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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/52 को खबर दी गई, किन्तु सेठ धनंजय पूजा में इतने तल्लीन थे कि उन्होंने इस बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया। __यह देखकर पक पड़ोसन ने सेठानी के ऊपर रंग रख दिया कि आपके भगतजी सेठ साहब ऐसे चिन्ता करनेवाले नहीं हैं। बच्चे को ले जाकर उन्हीं के सामने रख आओ। तब बच्चे की हालत देखकर अपने आप चिन्ता करेंगे। सेठानी तो पहले ही चिन्ता से विह्वल हो रही थी। यह सुन कर सेठानी ने बच्चे को उठाया और मन्दिर में ले जाकर पूजा करते हुए सेठजी के सन्मुख रख दिया और जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगी। सेठ धनंजय ने पूजा पूर्ण करने के बाद समझाया - सेठानीजी ! इतनी चिन्ता क्यों करती हो ? यदि बच्चे की आयु शेष है तो कोई उसे छीन नहीं सकता, यदि आयु समाप्त हो गई तो कोई बचा नहीं सकता। किन्तु सेठानी के ऊपर इन शब्दों का कुछ भी असर नहीं हुआ। वह उसी तरह रोती-चिल्लाती रही। बालक पड़ा-पड़ा मुँह से झाग छोड़ रहा था। सेठजी पूजन के बाद स्तुति में दत्तचित्त हो गये। उन्होंने एक स्तोत्र की रचना की और उसे भक्ति भाव से पढ़ने लगे, ताकि पुत्र वियोग की संभावना जनित दुःख कुछ कम होकर परिणाम निर्मल रह सकें। परन्तु यहाँ तो कुछ और ही हो गया, बालक के आयुकर्म के उदय से और सेठजी के पुण्य-उदय से सहज ही बालक का सर्पविष अपने आप उतर गया और धर्मप्रभावना हुई। आज भी वह स्तोत्र विषापहार के नाम से प्रसिद्ध है। मात्र शास्त्रज्ञान नहीं (7) आत्मज्ञान चाहिए! 'शिवभूति ! तुझे तो कुछ भी नहीं आता और न एक शब्द का भी स्मरण रहता है, मैं क्या उपदेश दूं।' 'गुरुदेव! मुझ दीन अनाथ पर दया कर सरल भाषा में धर्म का सार समझा दीजिए, मैं अनपढ़ बुद्धिहीन आपके शास्त्रों की गहराई को बिल्कुल भी नहीं समझता।' मुनिराज ने दया करके उसे समझाया - भाई ! तू इस मंत्र के रट ले और
SR No.032264
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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