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________________ BIKE 7 . जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/34 प्रश्नोत्तरीसभा जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश की रत्नसंचयपुर नगरी ! जहाँ के राजा जैनधर्म के उपासक पुण्यवन्त जीव महाराजा क्षेमंकर हैं और वहाँ उच्च शिखरों से सुशोभित जिनमन्दिर हैं। एक बार रत्नपुरी की राजसभा में क्षेमंकर महाराज अपने पुत्र, पौत्र एवं प्रपौत्र सहित विराजमान थे। इतने में उस राजसभा में एक पण्डित आया और पुत्र वज्रायुधकुमार से कहने लगा- हे कुमार! आप जीवादि पदार्थों का विचार करने में चतुर हैं तथा अनेकान्तरूप जैनमत के | अनुयायी हैं; परन्तु वस्तु या तो एकान्त क्षणिक होती है अथवा एकान्त नित्य होती है। तो फिर यह बताइये कि “जीव सर्वथा क्षणिक है ? या सर्वथा नित्य है ?" . ___ उत्तर में वज्रायुधकुमार अनेकान्त स्वभाव का आश्रय लेकर अमृत समान मधुर एवं श्रेष्ठ वचनों द्वारा कहने लगे – “हे विद्वान ! मैं जीवादि पदार्थों का स्वरूप पक्षपातरहित कहता हूँ; तुम अपने मन को स्थिर रखकर सुनो। जबतक तुमने अनेकान्तमय जैनधर्म का अमृत नहीं पिया; तभी तक तुम्हारी वाणी में एकान्तवादरूप मिथ्यात्व का विष आता है । अनेकान्त के अमृत का स्वाद लेते ही तुम्हारा मिथ्यात्वरूपी विष उतर जायेगा और तुम्हें तृप्ति होगी। सुनो ! जिनेन्द्र भगवान के अमृतसमान वचनों में ऐसा कहा है कि जीवादि कोई पदार्थ सर्वथा क्षणिक नहीं हैं और न सर्वथा नित्य हैं; क्योंकि यदि उसे सर्वथा क्षणिक माना जाये तो पुण्य-पाप का फल या बंध-मोक्ष आदि कुछ नहीं हो सकते; पुनर्जन्म नहीं हो सकता, विचारपूर्वक किये जाने वाले कार्य व्यापार
SR No.032264
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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