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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/23 विवाहमण्डपसेवैराग्य जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश है, जहाँ सदा अनेक केवली भगवन्त और मुनिवर विचरते हैं तथा जैनशासन का धर्मचक्र सदा चलता रहता है। वहाँ के लोग जैनधर्म में सदा तत्पर रहते हैं और स्वर्ग के देव भी वहाँ धर्म श्रवण करने आते हैं। उस देश की प्रभाकरी नगरी में धर्मात्मा स्मितसागर महाराजा राज्य करते थे। स्मितसागर महाराजा के अपराजित और अनन्तवीर्य नामक दो पुत्र थे। वे अपने साथ महान पुण्य लेकर आये थे; इसलिए वे बलदेव और वासुदेव हुए। राजा स्मितसागर दोनों पुत्रों को राज्य सौंपकर संसार से विरक्त हुए और स्वयंप्रभ जिनेन्द्र के निकट दीक्षा लेकर मुनि हो गये; परन्तु एकबार धरणेन्द्रदेव की दिव्य विभूति देखकर उन्होंने उसका निदान बंध किया; इसलिए चारित्र से भ्रष्ट होकर पुण्य को अति अल्प करके मृत्यु के पश्चात् धरणेन्द्र हुए। अरे रे! निदान वह वास्तव में निन्दनीय है जो किजीव को धर्म से भ्रष्ट करकेदुर्गति में भ्रमण कराता है। यहाँ प्रभाकरी नगरी में अपराजित तथा अनन्तवीर्य के राज्यवैभव में दिनप्रतिदिन वृद्धि होने लगी। उनकी राजसभा में बर्बरी और चिलाती नाम की दो राजनर्तकियाँ थीं- वे देश-विदेश में प्रख्यात थीं। उन दिनों शिवमन्दिर नाम की विद्याधरनगरी में राजा दमितारी राज्य करता था, वह प्रतिवासुदेव था, उसने तीन खण्ड पृथ्वी जीत ली थी और उसके शस्त्रभण्डार में एक दैवी चक्र उत्पन्न हुआ था। उस दमितारी राजा ने उन दोनों नर्तकियों की प्रशंसा सुनी; उसने बलदेव-वासुदेव को आदेश दिया कि दोनों नर्तकियाँ मुझे सौंप दो और मेरी आज्ञा में रहकर राज्य करो। __दोनों भाईयों ने युक्ति सोची, तदनुसार वे स्वयं ही नर्तकी का रूप धारण कर दमितारी के राजमहल में पहुँच गये और उसकी पुत्री कनकश्री का अपहरण कर ले गये। कनकश्री के अपहरण की बात सुनते ही राजा दमितारी सेना लेकर उन.
SR No.032264
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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