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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/19 शियार चला सिद्धों के मार्ग
(रात्रि भोजन-त्याग की कथा) पवित्र जिनधर्म तथा गुरुजनों को नमस्कार करके उनकी कथा लिखते हैं कि जिन्होंने रात्रि भोजन त्याग करके आगे चलकर मोक्ष प्राप्त किया। ___ जो महानुभाव जीवों की रक्षा के लिये रात्रि भोजन का त्याग करते हैं वे इसलोक तथा परलोक दोनों में सुखी रहते हैं। उनको हर प्रकार की सम्पदा सुलभ होती है और जो लोग रात्रि में भोजन करते हैं वे पापी होते हैं, उनको जीव हिंसा का पाप लगता है। इसलिये सभी के लिये रात्रि भोजन का त्याग हितकारी है। एक शियार ने मुनिराज से रात्रि भोजन-पान के त्याग का नियम लेकर जीवन पर्यंत उस नियम का निर्वाह किया और अगले ही भव में मोक्षलक्ष्मी का वरण कर अनन्त सुखी हुआ, उसका यहाँ कथारूप में वर्णन करते हैं।
मगधदेश में सुप्रतिष्ठित नाम का नगर अपनी सुन्दरता तथा विशालता के लिये प्रख्यात था। वहाँ के राजा जयसेन धर्मज्ञ तथा प्रजापालक थे। ___ वहाँ धनमित्र नाम का एक सेठ रहता था। उसकी पत्नी धनमित्रा थी। यह दम्पति जैनधर्म के दृढ़श्रद्धानी थे। एक दिन उनके पुण्य योग से उन्हें सागरसेन नामक अवधिज्ञानी मुनिराज को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुनिराज के आहारोपरान्त उन्होंने अतिविनय पूर्वक हाथ जोड़कर उनसे धर्मोपदेश सुनाने का निवेदन किया और कहा कि - "हे प्रभो ! अब हमको संतान की आशा नहीं रही। अत: इस संसार की मोह-माया में फंसने से उत्तम है कि जिनदीक्षा ग्रहण करके आत्महित करें।
तब अवधिज्ञानी मुनिराज ने कहा कि अभी दीक्षा का शुभ अवसर नहीं है। तुमको पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। उसके द्वारा अनेक प्राणियों का कल्याण होगा। मुनि की ऐसी भविष्यवाणी सुनकर सेठ दम्पति प्रसन्न हुए।
तभी से सेठानी धनमित्रा जिनपूजादि धार्मिक अनुष्ठानों की ओर विशेष ध्यान देने लगीं। उसने थोड़े समय के पश्चात् यथासमय एक प्रतापी पुत्र को