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________________ - जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/२४ सब देव : (खड़े होकर) हाँ, चलिये महाराज! इन्द्र : देवो! इन सब विमानों को सीधे न ले जाकर पहले वानरद्वीप में श्रीकंठ राजा के महल के ऊपर से हमको ले जाना है। मुक्तिकुमार : महाराज! ऐसा क्यों? इन्द्र : देखो, देवो! पूर्वभव में मेरे एक छोटे भाई थे, उनको सम्बोधन करने के लिये मैंने वचन दिया है। अभी वे श्रीकंठ राजा के रूप में हैं, उनके महल के ऊपर से विमान को जाते हुये देखकर उनको तुरन्त ही जातिस्मरण ज्ञान होगा तथा वे वैरागी बनेंगे। सभी देव : बहुत सुन्दर! चलिये महाराज! हिलमिल कर सब भक्त चलो नंदीश्वर जिनधाम में। नंदीश्वर जिनधाम में, नंदीश्वर जिनधाम में, नंदीश्वर जिनधाम में। अष्टमद्वीप में जो है राजे, शाश्वत जहाँ जिनबिंब विराजे। दिव्य जिनालय बावन शो), चहुँ दिशि बावड़ी पर्वत सोहें।। महिमा अति भगवान की, महिमा अति भगवान की।।१।। जिनबिम्बों की शोभा भारी, वीतरागता दर्शक प्यारी। मानस्तंभ है रत्न का भारी, करें देव सेवा सुखकारी।। जय बोलो! जिनेश्वर भगवान की, जिनेश्वर भगवान की।।२।। .
SR No.032263
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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