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________________ साहित्य प्रकाशन के अन्तर्गत् जैनधर्म की कहानियाँ भाग १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०, ११, १२,१३,१४,१५,१६ एवं अनुपम संकलन (लघु जिनवाणी संग्रह), चौबीस तीर्थंकर महापुराण (हिन्दी-गुजराती), पाहुड़दोहा-भव्यामृत शतक, आत्मसाधना सूत्र, विराग सरिता तथा लघुतत्त्वस्फोट तथा अपराध क्षणभर का (कॉमिक्स) – इसप्रकार चौबीस पुष्प प्रकाशित किये जा चुके हैं। जैनधर्म की कहानियाँ भाग-८ का यह तृतीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें भारी प्रसन्नता है। इसमें श्रावक की धर्मसाधना के रूप में श्री सकलकीर्ति श्रावकाचार पर आधारित सम्यग्दर्शन के आठ अंगों एवं अहिंसा आदि पाँच व्रतों के सम्बन्ध में कहानियों के माध्यम से भव्यजीवों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई है। ___ इन कहानियों का लेखन सकलकीर्ति श्रावकाचार के आधार पर गुजराती ब्र. हरिभाई सोनगढ़ द्वारा, उसका हिन्दी अनुवाद श्री वसंतराव सावरकर नागपुर द्वारा, सम्पादन पण्डित राकेश शास्त्री नागपुर द्वारा एवं वर्तनी की शुद्धिपूर्वक मुद्रण पण्डित रमेशचन्द जैन शास्त्री, जयपुर द्वारा किया गया है। अत: हम सभी के आभारी हैं। आशा है पाठकगण इनसे अपने जीवन में पवित्रता एवं सुदृढ़ता प्राप्त कर सन्मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल करेंगे। जैन बाल साहित्य अधिक से अधिक संख्या में प्रकाशित हो- ऐसी भावी योजना है। इसी के अर्न्तगत् जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१७ भी शीघ्र आ रहा है। साहित्य प्रकाशन फण्ड, आजीवन ग्रन्थमाला शिरोमणि संरक्षक, परमसंरक्षक एवं संरक्षक सदस्यों के रूप में जिन दातार महानुभावों का सहयोग मिला है, हम उन सबका भी हार्दिक आभार प्रकट करते हैं तथा आशा करते हैं कि भविष्य में भी सभी इसी प्रकार सहयोग प्रदान करते रहेंगे। विनीत: मोतीलाल जैन प्रेमचन्द जैन अध्यक्ष साहित्य प्रकाशन प्रमुख आवश्यक सूचना पुस्तक प्राप्ति अथवा सहयोग हेतु राशि ड्राफ्ट द्वारा "अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, खैरागढ़" के नाम से भेजें। हमारा बैंक खाता स्टेट बैंक आफ इण्डिया की खैरागढ़ शाखा में है।
SR No.032257
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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