SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/२८ गुरु : अच्छा! बहुत अच्छा!! परन्तु तुम हमारे धर्म के सूक्ष्म सिद्धांतों समझ तो सकोगे? . निकलंक : अवश्य महाराज! ये मेरे बड़े भाई तो महा बुद्धिमान और एकपाठी हैं- केवल एक बार सुनने से इन्हें सब याद रह जाता है। अकलंक : और मेरे छोटे भाई भी बहुत बुद्धिमान है। मात्र दो बार सुनने से इनको सब याद रह जाता है। गुरु : ठीक है, खुशी से यहाँ रहकर पढ़ो; परन्तु याद रखना कि कभी भी जैनधर्म का पक्ष करोगे तो फांसी ही दी जायेगी- ऐसा इस विद्यालय का नियम है। अकलंक : ठीक है गुरुजी, हम आपके नियमों का पालन करेंगे। गुरु : जाओ कक्षा में बैठो। (अकलंक निकलंक कक्षा में जाकर बैठते हैं और सबके साथ बोलते हैं।) देवं शरणं गच्छामिा धम्मं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि। (अकलंक और निकलंक विद्यापीठ में रहकर पूरी लगन और निष्ठा से अध्ययन में जुट गये, अल्पसमय में ही उन्होंने सभी शास्त्रों
SR No.032255
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy