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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१३ . MAP ज्योति : भाई! अनन्तकाल में हमको यह मनुष्य जन्म मिला है तो अब इस जीवन में करने योग्य कार्य क्या है? अकलंक : मनुष्य जीवन में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की आराधना करने योग्य कार्य है। आशीष : सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना किस प्रकार होती है? निकलंक : इस रत्नत्रय के मुख्य आराधक तो मुनिराज हैं, वे चैतन्य स्वरूप में लीन रहकर रत्नत्रय की आराधना करते हैं। हंसमुख : रत्नत्रय के मुख्य आराधक मुनिराज हैं। तो क्या गृहस्थों के भी रत्नत्रय की आराधना हो सकती है? अकलंक : हाँ, एक अंशरूप में रत्नत्रय की आराधना गृहस्थों के भी हो सकती है। पारस : क्या अपने-जैसे छोटे बालक भी रत्नत्रय की आराधना कर सकते हैं? निकलंक : हाँ, जरूर कर सकते हैं, परन्तु उस रत्नत्रय का मूल बीज सम्यग्दर्शन है, पहले उसकी आराधना करनी चाहिए।
SR No.032255
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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