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________________ गलती पर गलती करने का फल अयोध्या नगरी में क्षीरकदम्ब नाम का एक ब्राह्मण था उसके पास नारद, पर्वत, वसु, ये तीन शिष्य पढ़ते थे। इनमें पर्वत उन्हीं का लड़का था तथा वसुवहाँ के राजा का एवं नारद सेठ का लड़का था। वे तीनों पढ़ने के बाद अपने-अपने घर जाकर अपना-अपना कार्य करने लगे। एक दिन पर्वत कथा कहते हुए होम करने के लिये अज नाम बकरे का बता रहा था। इतने में नारद का वहाँ से निकलना हुआ, उसने कहा- ऐसा मत कहो अज नाम तो जवा का है और जवा ही होम के कामआता है।' पर्वत ने सुनते ही कहा- 'मैं जो कह रहा हूँ वही सत्य है आप मेरे बीच में मत बोलो।' नारद ने कहा- 'यह तेरा उपदेश पापमय है, मेरी न माने तो अपने साथी वसु, जो वर्तमान में राजपद पर स्थित हैं, उनसे निर्णय ले सकते हैं; तब उसके उत्तर देने के पहले ही उसकी शिष्य मंडली कहने लगी।यह ठीक है-इसका निर्णय राजा के पास ही होगा और जो झूठा निकलेगा वह दण्ड का भी भागी होगा। ___ इधर, पर्वत अपनी माँ से आकर पूछता है कि माँ अज नाम बकरे का ही है, जो यज्ञों में होम के काम आता है। नहीं नहीं बेटा ! अब कहा सो कहा, अब मत कहना। पर्वत कहता है माँ ! इसका निर्णय कल दरबार में राजा वसु करेंगे; क्योंकि मेरी और नारद की बात को सुनकर शिष्यमण्डली ने यही तय किया है। अब क्या होगा ? बुरा हुआ, हो सकता है राजा सत्यवान हैं, मौत की सजा दे देवें। ___ माँ की ममता तो देखो, जानते हुए भी राजा के पास पहुँचकर, “हे वसु ! मेरी पहले की धरोहर है; ध्यान करो, मैंने तुम्हें पढ़ते समय गुरुजी से पीटते बचाया था, तब आपने राजपद पाने के बाद दक्षिणा देने की बात कही थी, सो आप सत्यवादी हैं, आप मेरी दक्षिणा देने में न नहीं करेंगे। मुझे विश्वास है जल्दी हाँ कीजिए ! हाँ कीजिए!! कहकर दक्षिणा में पर्वत कहै सोसत्य'-ऐसा कहना माँग लिया।" गुरानी के मोह में बिना कारण पूछे राजा वसु ने हाँ भर दी और सभा में जानते हुए भी पर्वत कहे सो सत्य कह दिया। फल यह हुआ कि मयसिंहासन के राजा वसु धरती में धंस गया और मरण कर नरकगति को प्राप्त हुआ तथा वहाँ सेठजी की विजय हुई एवं पर्वत को अपमानित होना पड़ा। जिसके कारणवह तापसी बनातथा कुतप के योग से राक्षस होकर उसने वहीखोटामार्गचलायाव सप्तम नरक में गया। ___ उक्त कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि गलती को गलती मानकर छोड़ने का प्रयत्न करें, क्योंकि गलती को सही बताने वालों की खोटी गति ही होती है। - पद्मपुराण के आधार से (१०)
SR No.032255
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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