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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/७० द्वारा पर्वत टूट जाते हैं, वैसे ही हनुमान के वज्र प्रहार द्वारा लंका नगरी तितर-बितर हो गई । "हनुमान को रावण ने बाँध लिया" - यह जानकर सीता रुदन कर रही थी कि इतने में आकाश में हनुमान को उड़ते देखा, इससे प्रसन्न होकर दूर से ही उसे आशीष देने लगी। पुण्य-प्रतापी हनुमान विद्या के बल से आकाश में उड़ते-उड़ते शीघ्र ही किष्किंधापुरी में राम के समीप आ पहुँचे । " सीता का पता लगाकर हनुमान आ पहुँचे " - यह जानकर किष्किंधानगरी में हर्ष फैल गया। सीता की चिन्ता में जिनका मुख मुरझा गया है - ऐसे श्रीराम हनुमान से सीता की बात सुनकर प्रसन्न हुए। राम की आँखों में आँसू उमड़ पड़े। हनुमान को देखते ही उन्हें पोंछकर पूछा i - I "हे मित्र ? सचमुच मुझे कहो, क्या मेरी सीता जीवित है ?" हनुमान ने कहा - "हाँ देव ! वह जीवित है, आपके ध्यान में दिन बिता रही है । निशानी के रूप में उसने यह चूड़ामणि मुझे दिया है। आपके विरह में उसकी आँखों में तो मानो चौमासा ही (वर्षा ऋतु) लगा है, किसी के साथ बात भी नहीं करती। रावण के सामने तो देखती भी नहीं, ग्यारह दिन से उसने खाया-पिया भी न था; आपके कुशल समाचार सुनने के बाद आज ही उसने भोजन किया, इसलिए अब उन्हें वापिस लाने का शीघ्र उद्यम करो !” यह सुनकर राम-लक्ष्मण ने बड़ी सेना सहित (कार्तिक वदी पंचमी को ) लंका की तरफ प्रस्थान किया । रास्ते में अनेक शुभ शगुन हुए। राम की सेना लंका के निकट जब पहुँची, तब तो लंका में खलबलाहट मच गई। भाई विभीषण ने रावण को बहुत समझाया, परन्तु वह माना नहीं और राम-लक्ष्मण के साथ लड़ने को तैयार हो गया । धर्मात्मा विभीषण से अपने भाई का अन्याय देखा न गया, इससे वह रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में चला गया।
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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