SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/६८ उतारकर हनुमान के हाथ में दिया । तब सीता रोती- रोती कहने लगी"भाई हनुमान, अब तुम जल्दी यहाँ से विदाई लो; क्योंकि वहाँ राम राह देखते होंगे और यहाँ रावण को खबर पड़ते ही वह तुम्हें पकड़ने का उद्यम करेगा, इसलिए अब विलम्ब करना उचित नहीं.. ।” .... - - “हे माता ! राम-लक्ष्मण सहित हम शीघ्र ही यहाँ आकर आपको छुड़ायेंगे; तुम धैर्य रखना, अपने को तो सदा पंच परमेष्ठी का शरण है। " - इसप्रकार हनुमान ने सीता को धैर्य बँधाकर वहाँ से विदाई ली। राम की अँगूठी सीता ने अपनी अंगुली में पहनी, उस अंगूठी के स्पर्श से उसे राम के साक्षात् मिलन जैसा ही सुख हुआ, जैसे सम्यक्त्व के स्पर्श से भव्यजीव को मोक्ष जैसा सुख होता है। सीता के मिलन से हनुमान को अपने जीवन में एक महान कार्य करने का सन्तोष हुआ। अहो, संकट में पड़े हुए साधर्मी की सहायता के लिए कुदरत ही जब तैयार हो, तब धर्मात्मा से कैसे रहा जा सकता है ? संकट के समय एक साधर्मी सती-धर्मात्मा की सेवा करने से उसका हृदय धर्मप्रेम से भर गया । उसे अपनी अंजना माता के जीवन के प्रसंग एक के बाद एक नजरों के सामने आने लगे । - - ऐसा प्रतापी पुरुष लंका में कहाँ है ?" हनुमान के अद्भुत रूप को देखकर लंका की स्त्रियाँ आश्चर्य करने लगीं - “ अरे ! ये कामदेव जैसा पुरुष कौन है ? कहाँ से आया है? 66 दूसरी तरफ हनुमान द्वारा अपमानित हुई रावण की स्त्रियाँ रोतीरोती रावण के पास गईं और हनुमान की सभी बातें कहीं, यह सुनते ही रावण ने क्रोधित होकर हनुमान को पकड़ लाने के लिए सेना भेजी, परन्तु अकेले हनुमान ने ही सेना को भगा डाला और लंका नगरी में हा-हाकार मचा दिया। अंत में इन्द्रजीत ने आकर हनुमान को पकड़ लिया और बाँधकर रावण के पास लाया । हनुमान को देखते ही आश्चर्ययुक्त सभाजन कहने लगे
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy