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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४ -४/७१ लक्ष्मण के स्वर्गवास के बाद जब रामचन्द्रजी ने यह बात सुनी तो शीघ्र ही वहाँ आये और लक्ष्मण की मृतदेह को देखकर 'यह तो जीवित है' - ऐसा मानकर उससे बातचीत करने लगे.... स्नेहीजनों ने लक्ष्मण की देह के अग्नि संस्कार के लिए उन्हें बहुत समझाया; परन्तु रामचन्द्रजी ने किसी की बात नहीं सुनी और लक्ष्मण के मृतक शरीर को कन्धे पर लटकाकर घूमने लगे.... T 9008 परामर वे उस मृतदेह के साथ खिलाने, पिलाने, नहलाने, सुलाने और बुलवाने आदि की अनेक चेष्टायें करते । यद्यपि रामचन्द्रजी को आत्मा का ज्ञान था, परन्तु अस्थिरता और मोह ( चारित्र मोह) के कारण ही ये सभी चेष्टायें होती थी, इस प्रकार चेष्टायें करते-करते दिन-पर-दिन बीतने लगे ।
SR No.032253
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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