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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/३९ मुनिराज अमितगति सर्व यथार्थ वृत्तान्त कहने लगे; क्योंकि महापुरुष तो सहज ही परोपकारी होते हैं, अतः मुनिराज ने मधुरवाणी से कहा - "हे पुत्री ! अंजना के गर्भ में स्थित जीव महापुरुष है । सर्वप्रथम तुम्हें उसी (हनुमान) के पूर्वभवों का ज्ञान कराता हूँ । तुम ध्यानपूर्वक सुनो । तत्पश्चात् अंजना पूर्वभव के जिस पापाचरण के फलस्वरूप वर्तमान में दुखावस्था को प्राप्त हुई है – उसका वृत्तान्त कहूँगा । " हनुमान के पूर्वभवों का वृत्तान्त " जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मंदिरनगर में प्रियनन्दी नामक एक गृहस्थ था, उसके दमयन्त नामक एक पुत्र था । एक बार वह वसंतऋतु में अपने मित्रों के साथ वनक्रीड़ा के लिये वन में गया, वहाँ उसने एक मुनिराज को देखा जिनका आकाश ही वस्त्र था, तप ही धन था और वे निरंतर ध्यान एवं स्वाध्याय में उद्यमवंत थे - ऐसे परम वीतरागी मुनिराज को देखते ही दमयन्त अपनी मित्र मण्डली को छोड़कर श्री मुनिराज के समीप पहुँच गया, मुनिराज को नमस्कार कर उनसे धर्मश्रवण करने लगा । मुनिराज के तत्त्वोपदेश से उसने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की और श्रावक के व्रत एवं अनेक प्रकार के नियमों से सुशोभित हो घर आया । " तत्पश्चात् एक बार उस कुमार ने दाता के सात गुण सहित मुनिराज को नवधाभक्तिपूर्वक आहार दान दिया और अन्त समय में समाधिमरण पूर्वक देह का परित्याग कर देवगति को प्राप्त हुआ । स्वर्ग की आयु पूर्णकर वह जम्बूद्वीप के मृगांक नगर में हरिचन्द्र राजा की प्रियंगुलक्ष्मी रानी के गर्भ से सिंहचन्द्र नामक पुत्र हुआ । वहाँ भी संतों की सेवा पूर्वक समाधिमरण ग्रहण कर स्वर्ग गया। वहाँ से आयु पूर्ण कर भरत क्षेत्र के विजयार्द्ध पर्वत पर अहनपुर नगर में सुकंठराजा की कनकोदरी रानी के यहाँ सिंहवाहन नामक पुत्र हुआ जो महागुणवान एवं रूपवान था, उसने बहुत वर्षों तक राज्य किया, तत्पश्चात् विमलनाथ स्वामी के समवशरण में आत्मज्ञान पूर्वक संसार से
SR No.032253
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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