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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/१२ प्राप्त प्रस्तावों को सुनकर धन्यमंत्री कहने लगे - "हे राजन ! दक्षिणश्रेणी में कनकपुर नामक नगर के राजा हिरण्यप्रभ एवं रानी सुमना का सुयोग्य पुत्र सौदामिनी कुमार (विद्युतप्रभ ) है । वह गुणवंत, यशवंत तो है ही, साथ ही पराक्रमी भी ऐसा है कि सारे विद्याधर भी एक साथ युद्ध हेतु प्रस्तुत हों, तथापि उसे पराजित नहीं कर सकते। अतः मेरे विचार से तो राजकुमारी के लिये इससे उपयुक्त वर अन्य नहीं हो सकता । " धन्यमंत्री के उक्त प्रस्ताव को सुनकर संदेहपराग नामक दूसरा मंत्री 'अत्यन्तं गंभीर होकर कहने लगा - “यद्यपि यह नि:संदेह सत्य है कि कुमार विद्युतप्रभ महाभव्य है, किन्तु उनके मन में सदैव संसार की अनित्यता- क्षणभंगुरता की विचारतरंगें प्रवाहित होती रहती हैं, इतना ही नहीं, वे वैरागी कुमार तो छोटी उम्र में ही इस असार-संसार का परित्याग कर मोक्ष प्राप्ति हेतु अन्तर - बाह्य दिगम्बर दशा को अंगीकार कर लेंगे और विषयाभिलाषा विहीन वे कुमार विकार एवं अपूर्णता का क्षय करके परिपूर्ण साध्य दशा को प्राप्त करेंगे । ऐसी स्थिति में उनके साथ राजकुमारी अंजना का विवाह करने से कन्या पतिविहीन हो जावेगी । - हाँ! भरत क्षेत्र की विजयार्द्धपर्वत की दक्षिणश्रेणी में आदित्यपुर नामक नगर है, वहाँ राजा प्रहलाद एवं रानी केतुमति के वायुकुमार (पवनंजय या पवनकुमार) नामक पुत्र है, जो कि महापराक्रमी, रूपवान, शीलवान एवं गुणवान है, वही सर्वप्रकार से कन्या के योग्य उत्तम वर है - ऐसा मेरा मानना है ।" संदेहपराग मंत्री की बात सुनकर सबको अत्यन्त हर्ष हुआ और सभी ने इस सम्बन्ध में अपनी सहमति प्रदर्शित की। वसंत ऋतु एवं फाल्गुनी मास की अष्टान्हिका का शुभागमन हुआ। फाल्गुन शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक चलने वाला पर्व अष्टान्हिका
SR No.032253
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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