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________________ भारी रोग और सस्ता इलाज नगर सेठ की मृत्यु पर सभी ने शोक मनाया। क्रिया-कर्म से निवृत हो जाने के बाद सेठ के पुत्र ने अपने मुनीम से पूछा – “मुनीमजी ! अपने पास कितना धन है ?"मुनीमजी ने उत्तर दिया- “तीन पीढ़ियाँ खाएँ जितना।" सेठ के पुत्र ने मुनीमजी से तो कुछ नहीं कहा, परन्तु उसे इस बात की भारी चिन्ता सताने लगी कि "चौथी पीढ़ी क्या खायेगी ?" इस चिन्ता के कारण उसका शरीर दिन पर दिन घुलने लगा। कई वैद्यों और हकीमों से इलाज कराया, पर सब व्यर्थ गया। अन्त में ज्योतिषियों से परामर्श लिया गया। ज्योतिषियों ने परामर्श दिया कि “यदि निरन्तर एक माह प्रतिदिन प्रात:काल गरीबों को अनाज-कपड़ा का दान किया जाए तो रोग टल सकता है।" ज्योतिषियों के परामर्शानुसार सेठ के पुत्र ने प्रतिदिन प्रात:काल गरीबों को अनाज-कपड़ा का दान देना शुरु कर दिया। एक दिन कोई भी दान लेने नहीं आया, तो व्रतभंग की आशंका से सेठपुत्र घबराया, उसने राह में जाते हुए एक परिग्रह परिमाण व्रती सच्चे श्रावक को गरीब समझकर उससे कहा“आप दान ले लो, अन्यथा मेरा व्रतभंग हो जायेगा।" तब वह बोला – “मैं घर जाकर देखता हूँ कि मुझे आज अनाज की आवश्यकता है या नहीं ?" थोड़ी देर बाद आकर वह बोला- “सेठजी आज का काम चल सके - इतना अनाज मेरे घर में है।" सेठ ने कहा - तो कल के लिए ले जाओ। वह बोला – “मैं कल की चिन्ता आज नहीं करता। सेठपुत्र के मन में विचार आया कि “यह इतना गरीब होने पर भी यह कल की चिन्ता नहीं कर रहा है और एक मैं हूँ, जो तीन पीढ़ी बाद की चिन्ता करके फिक्र कर मर रहा हूँ।" उसी दिन से वह अच्छा होने लगा। स्वस्थ होने पर उसे उस गरीब व्यक्ति से मिलने पर पता चला कि यह कोई साधारण मनुष्य नहीं है, यह तो ज्ञानघन चैतन्य धन का स्वामी सम्यग्दृष्टि अणुव्रती श्रावक है। - ऐसा जानकर उसने शेष जीवन उसी ज्ञानी धर्मात्मा की सत्संगति में रहकर आत्मकल्याण के लिए समर्पित कर दिया।
SR No.032253
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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