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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग- -३/६१ श्रीकृष्ण की मृत्यु द्वीपायन मुनि के क्रोध से द्वारिका नगरी जलकर भस्म हो गयी। श्रीकृष्ण और बलभद्र जैसे महान पराक्रमी योद्धा उस नगरी को तो बचा ही न सके, परन्तु अपने माता-पिता को भी नगरी के बाहर न निकाल सके। अरे, देखो ! इस संसार की स्थिति ! ऐसे पुण्य का क्या भरोसा !! बलदेव और वासुदेव जैसे महापुण्यवन्त पुरुष, जिनके पास तीन खण्ड का राज्य, सुदर्शन चक्र जैसी महान विभूति अचिन्त्य शारीरिक बल तथा हजारों देव और राजा जिनकी सेवा करने वाले हों - ऐसे महान राजा भी पुण्य के समाप्त होने पर रत्नों और राज्य से रहित हो गये । देव दूर चले गये। नगरी और महल सभी जल गये। समस्त परिवार का वियोग हो गया । मात्र प्राण ही उनका परिवार रहा... । द्वारिका नगरी को जलती हुई छोड़कर बलभद्र और श्रीकृष्ण दक्षिण देश की ओर जा रहे थे, उसी बीच में कौशाम्बी नाम का भयंकर • वन आया, तपती दुपहरी में उस निर्जन वन में मृगमरीचिका का जल तो बहुत दिखाई देता था, परन्तु सच्चा पानी मिलना दुर्लभ था। उसी समय थके हुए श्रीकृष्ण को बहुत प्यास लगी.... वे बलभद्र से कहने लगे “हे बन्धु ! मुझे बहुत प्यास लगी है, पानी के बिना मेरे होंठ और तालु सूख रहे हैं, अब मैं एक कदम भी नहीं चल सकता, इसलिए मुझे जल्दी ठण्डा पानी पिलाओ। जिस प्रकार अनादि से सार रहित संसार से संतप्त जीव को सम्यग्दर्शन रूपी जल की प्राप्ति होने पर उसका भवआताप मिटता है, वैसे ही मुझे शीतल जल लाओ, जिससे मेरी प्यास मिटे । प्यास के कारण श्रीकृष्ण के मुँह में से धीरे-धीरे श्वास निकल रही थी। अरे रे ! तीन खण्ड के स्वामी को पानी का ही संकट पड़ गया 1 बलभद्र दुःखी होकर अत्यन्त स्नेह से कहते हैं - " हे हरि ! हे भ्रात ! हे तीन खण्ड के रक्षक ! मैं अपने और तुम्हारे लिए ठण्डा पानी लाता हूँ। .. तब तक तुम जिनेन्द्र भगवान के स्मरण के द्वारा अपनी तृषा शांत करो। तुम तो जिनवाणी रूपी अमृतपान के द्वारा सदा तृप्त हो। इस
SR No.032252
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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