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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - ३ -३/२० प्रथम नोकर्म की गुफा में बैठकर परिणति ने देखा.... परन्तु चैतन्य राजा कहीं भी नहीं दिखा। फिर आवाज दी- “ शरीर में कहीं चैतन्य प्रभु है ?” परन्तु किसी ने जबाव नहीं दिया । परिणति के द्वारा नोकर्म के चक्कर लगाकर देखने पर भी कहीं चैतन्य प्रभु दिखाई नहीं दिया । “यहाँ तो मेरा चैतन्य प्रभु नहीं है" - ऐसा समझकर वह पीछे हटी, लेकिन फिर भी परिणति चैतन्यप्रभु को खोजने में अत्यंत अधीर हो रही थी । तब दयालु श्री गुरु ने पूछा - " तू किसे खोज रही है ?" " परिणति ने कहा – “मैं अपने चैतन्य प्रभु को खोज रही हूँ.... परन्तु वह तो यहाँ नहीं मिला.... इसलिए मैं वापिस जा रही हूँ। श्रीगुरु ने कहा - " तू पीछे मत जा.... तुम्हारा प्रभु यहीं है। यदि चैतन्य प्रभु विराजमान न होता तो इस जड़ शरीर को पंचेन्द्रिय जीव क्यों
SR No.032252
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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