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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/१५ मुनिराज के उपदेश को सुनकर उन सभी जीवों ने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया.... और मोक्षमार्ग में चलने लगे। फिर वे सभी जीव वहाँ से आयु पूर्ण करके स्वर्ग गये और चार भव बाद राजा का जीव ऋषभदेव तीर्थंकर हुआ, उसी समय बंदर का जीव उनका पुत्र हुआ, उसका नाम गुणसेन था । वे भगवान से दीक्षित होकर ऋषमदेव भगवान के गणधर हुये, अंत में केवलज्ञान प्रकट करके मोक्ष प्राप्त किया । अहो ! जो कभी बंदर था, आज वह भी आत्मा को समझकर भगवान बन गया । वह जीव धन्य है । भाइयो ! सच्चे वीतरागी मुनि की भक्ति से और आत्मा को समझने से, एक बंदर का जीव भगवान बन गया । हम सभी भी अपनी आत्मा को समझें और मुनियों की सेवा करें । एक था मेंढ़क ढाई हजार वर्ष पहले की बात है । जिस समय भगवान महावीर इस भारतभूमि पर विचरण करते थे.... और धर्म का उपदेश देते थे । महावीर प्रभु एक बार राजगृही नगरी में पधारे। राजगृही नगरी बहुत ही रमणीय थी । वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करते थे । वे राजा जैनधर्म 1 महान भक्त थे । 1 एक दिन माली ने आकर राजा को समाचार दिया कि नगरी के पास वैभार पर्वत पर महावीर प्रभु पधारे हैं। श्रेणिक राजा यह सुनकर बहुत खुश हुए और माली को बहुत इनाम दिया.... और नगरी में ढिंढोरा पिटवाया " महावीर प्रभु पधारे हैं, सभी लोग उनके दर्शन करने के लिए चलो,... उनके उपदेश सुनने के लिए चलो। "
SR No.032252
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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