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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग -२/५५ एकबार वह हाथी कहीं पर कीचड़ वहाँ में फँस गया, उसके पूर्वभव का भाई (वैरी) कमठ मरकर सर्प हुआ था, उस सर्प ने हाथी को डस लिया. सम्यक्त्व सहित समाधिमरण करके वह हाथी तो स्वर्ग में देव हुआ और सर्प का जीव नरक में गया । 3. अगले भव में हाथी का जीव मनुष्य होकर मुनिदशा में ध्यान में बैठा था, वहाँ अजगर हुए कमठ के जीव ने उसे डस लिया । फिर से वह स्वर्ग में गया और अजगर नरक में । इसके बाद के भव में हाथी का जीव वज्रनाभि- चक्रवर्ती हुआ, वे मुनि होकर ध्यान में बैठे थे, वहाँ शिकारी भील हुए कमठ के जीव ने बाण से उन्हें वेध डाला । पुनः वह स्वर्ग में गया, भील नरक में । उसके बाद के भव में हाथी का जीव अयोध्या नगरी में आनंदकुमार नाम का महाराज हुआ। वहाँ वैराग्य पूर्वक मुनि होकर सोलह कारण भावना के द्वारा उसने तीर्थंकर प्रकृति बाँधी । आनंद मुनिराज आत्मध्यान में बैठे थे, इसीसमय सिंह हुए कमठ के जीव ने उन्हें खा लिया ..... वे मुनिराज स्वर्ग के देव हुए और कमठ का जीव नरकादि में भ्रमण करतेकरते 'संगम' नाम का देव हुआ । अंतिम भव में उस हाथी के जीव ने वाराणसी (काशी) नगर में पारसनाथ तीर्थंकर के रूप में अवतार लिया... दीक्षा लेकर मुनि होकर
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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