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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/३४ " पुत्र जन्म की बात सुनते ही राजा दीक्षा ले लेंगे । " - इस भय से रानी सहदेवी ने यह बात गुप्त रखी । कुछ दिन तक तो यह बात राजा गुप्त रही, परन्तु सूर्य उदय कब तक छिपा रह सकता है ? उनके पुत्र जन्म की खुशखबरी पूरी अयोध्या नगरी में फैल गयी.... और जब नगरवासी राजा को बधाई देने आये, तब राजा ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने आभूषण भेंट किये...... और अपने वैराग्य का विचार प्रकट किया, तथा कहा कि – “ बस, अब मैं राजपुत्र को राज्य सौंपकर इस संसार - बंधन से छूहूँगा” और तदनुसार राजा कीर्तिधर ने पंद्रह दिन की आयु के राजकुमार कौशल जो अभी तक माता की गोद में था, उसका राजतिलक करके स्वयं ने जिनदीक्षा धारण कर ली..... और आत्मसाधना में तत्पर होकर वन में विचरण करने लगे । कीर्तिधर राजा मुनि हो गये, जिससे उनकी रानी सहदेवी को बहुत ही आघात हुआ, वह सोचने लगी कि कहीं इसीप्रकार मेरा पुत्र भी दीक्षा लेकर न चला जाय ? तभी किसी भविष्यवेत्ता ने घोषणा की, कि "जिस दिन यह राजकुमार अपने पिता को मुनि अवस्था में देखेगा, उसी दिन यह दीक्षा ले लेगा । " कोई मुनि राजकुमार की नजर में न आ जाए, इसलिए रानी ने ऐसा आदेश निकाल दिया कि “किसी निर्ग्रथ-मुनि को राजमहल के पास नहीं आने दिया जावे !" अरे रे, पुत्र मोह से उसको मुनियों के प्रति द्वेष हो गया । राजकुमार सुकौशल वैराग्यवंत धर्मात्मा था, राजवैभव के सुखों में उसका मन नहीं रमता था । आत्मस्वरूप की भावना में लीन रहता था । युवा होते ही माता ने उसका विवाह कर दिया ।
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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