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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/३२ ली। बाद में कीर्तिधर ने भी पन्द्रह दिन के पुत्र सुकौशल का राजतिलक करके जिनदीक्षा ले ली और बाद में सुकौशल कुमार ने भी गर्भस्थ बालक का राजतिलक करके अपने पिता के पास जिनदीक्षा अंगीकार की।... इतना ही नहीं, उनकी माँ ने वाघिन होकर उन्हें खाया, फिर भी वे आत्मध्यान से नहीं डिगे और केवलज्ञान प्रकट करके मोक्ष प्राप्त किया। उसके बाद राजा दशरथ, रामचन्द्र भी उस ही वंश में हुये। चौड़ी सड़क – सुन्दर मार्ग दो मित्र बात कर रहे थे, उनमें अमेरिकन मित्र अपने जैन मित्र से बोला- "हमारे शहर की सड़कें इतनी चौड़ी हैं कि एक सड़क पर पूरे वेग (गति) के साथ एक साथ चार मोटरें जाती हैं और चार मोटरें आती हैं। तब दूसरा जैन मित्र बोला- भाई, हमारी मोक्षपुरी की सड़क तो इतनी चौड़ी हैं कि उसमें असाधारण वेग (मोटर की अपेक्षा असंख्यात गुणी) से एक साथ एक सौ आठ जीव गमन कर सकते हैं। अमेरिका में तो मोटर की बहुत दुर्घटना होती होंगी, लेकिन हमारी इस मोक्षपुरी के मार्ग पर कोई दुर्घटना नहीं होती। ___ हाँ, यह सच है कि यह मार्ग मात्र “वन-वे" है, उस मार्ग में जा तो सकते हैं; परन्तु फिर लौटकर वापिस नहीं आ सकते। सचमुच, यह मार्ग बहुत ही सुन्दर मार्ग है। इसका नाम है - मोक्षमार्ग। कहा भी है- सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र - इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है।
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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