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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/२० एक साथ ६० हजार राजकुमारों के मरण को देखकर राजमंत्री भी एकदम घबरा गये - राजमंत्री जानते थे कि महाराजा को पुत्रों से बहुत ही प्रेम है, उनके मरण का समाचार वे सहन नहीं कर सकते। उनमें भी एक साथ ६० हजार पुत्रों का मरण ! यह 'दुःखद समाचार' राजा को सुनाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। उसीसमय, मणिकेतुदेव एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके सगर चक्रवर्ती के पास आया और अत्यंत शोकपूर्वक कहने लगा "हे महाराज ! मेरा इकलौता जवान पुत्र मर गया है, यमराज ने उसका हरण कर लिया है, आप तो समस्त लोक के पालक हो, इसलिए मेरे पुत्र को वापिस लाकर दे दो, उसे जीवित कर दो, यदि तुम मेरे इकलौते पुत्र को जिंदा नहीं करोगे तो मेरा भी मरण हो जावेगा। 9 ब्राह्मण की बात सुनकर राजा ने कहा- "अरे ब्राह्मण ! क्या तू यह नहीं जानता कि मृत्यु तो संसार के सभी जीवों को मारती ही है । एकमात्र सिद्ध भगवान ही मरण से रहित हैं, दूसरे सभी जीव मरण से सहित हैं । - इस बात को सभी जानते हैं कि जिसकी आयु समाप्त हो गयी, वह किसी भी प्रकार से जीवित नहीं रह सकता। सभी जीव अपनी-अपनी आयु प्रमाण ही जीते हैं, आयु पूरी होने पर उनका मरण होता ही है, इसलिए मरणरूप यमराज को यदि तुम जीतना चाहते हो तो शीघ्र ही सिद्धपद को साधो । इस जीर्ण-शीर्ण शरीर के या पुत्र के मरण का शोक छोड़कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए तत्पर होकर जिनदीक्षा धारण करो । घर में पड़े रहकर बूढ़े होकर मरने के बदले दीक्षा लेकर मोक्ष का साधन करो। " इसप्रकार सगर चक्रवर्ती ने वैराग्यप्रेरक उपदेश दिया । उससमय उस ब्राह्मण (मणिकेतु देव) ने कहा- "हे महाराज ! जो आप कहते हो वह बात यदि वास्तव में सत्य है तो मेरी भी एक बात सुनो, यदि यमराज
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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