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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/१४ दो ज्ञानियों की चर्चा एक था सिंह और एक था हाथी । एक बार उन दोनों की भेंट हुई। वे दोनों आत्मा को जाननेवाले थे और आनंद से बात करते थे - - सिंह ने पूछा- हे गजराज ! तुम्हे आत्मज्ञान कहाँ हुआ ? हाथी ने कहा- हे वनराज ! सम्मेदशिखर की ओर एक संघ जा रहा था, उसके साथ रहनेवाले जैन मुनिराज श्री अरविंद के उपदेश से हमें आत्मज्ञान हुआ। फिर हाथी ने पूछा- हे वनराज ! तुम्हें आत्मज्ञान कहाँ हुआ ? सिंह ने कहा- आकाशमार्ग से दो मुनिराज आये थे, उनके उपदेश से मुझे आत्मज्ञान हुआ । तब सिंह ने पूछा - हे हाथी भाई ! तुम भविष्य में क्या होगे ? हाथी ने कहा- मैं पारसनाथ तीर्थंकर होकर मोक्ष जाऊँगा । फिर हाथी ने पूछा- हे सिंह भाई ! तुम भविष्य में क्या होगे ? सिंह ने कहा- मैं महावीर - तीर्थंकर होकर मोक्ष जाऊँगा । वाह, एक-दूसरे की यह सरस बात सुनकर वे दोनों भावी तीर्थंकर खुश हुए और इन दोनों की बात सुनकर हम सब भी.. . खुश हुए। •
SR No.032251
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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