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________________ प्रकाशकीय तत्त्वदर्शन के उत्कृष्ट मनीषी आचार्य श्री हरिभद्रसूरि (आठवीं शती) जैसे बहुश्रुत, बहुविद् और अनेक विषयों पर लगभग शताधिक ग्रन्थों के यशस्वी प्रणेता के द्वारा विरचित, जैन दर्शन और मान्यताओं की दृष्टि से योग का विवेचन करने वाला, 'योगबिन्दु' नामक यह ग्रन्थ विद्वानों में अत्यन्त समादृत है। परम आदरणीया, भक्त-श्रावकगण वन्दनीया, पूज्य साध्वी सुव्रताश्री जी महाराज सा. के द्वारा प्रणीत इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगग्रन्थ के सरल और सरस हिन्दी में अत्यन्त मनोयोग एवं परिश्रमपूर्वक किये गये इस अनुवाद को प्रकाशित करते हुए यह संस्थान अत्यन्त आनन्द और गौरव का अनुभव कर रहा है। श्री हरिभद्रसूरि द्वारा संस्कृत-प्राकृत में विरचित योग विषयक चार ग्रन्थों में इसका विशेष महनीय स्थान है। इसमें भी वही प्रौढता है जो उनके अन्य संस्कृत योगग्रन्थ 'योगदृष्टि समुच्चय' में परिलक्षित होती है। इस अनुवाद को सर्वांगीण बनाने के लिए हमारे संस्थान के उपाध्यक्ष और अहमदाबाद स्थित एल. डी. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी के मान्य निदेशक प्रो. जितेन्द्र बी. शाह ने एक विस्तृत प्रस्तावना लिख कर ग्रन्थगत समस्त ज्ञान-राशि को संक्षिप्त, सुव्यवस्थित और सुबोध रूप में प्रस्तुत कर दिया है जो पाठकों के लिए ग्रन्थ में सुगम प्रवेश हेतु मार्ग तो तैयार करता ही है, साथ ही जो स्वयं में भी स्वतन्त्र रूप से जैन योगशास्त्र के मूल स्वरूप के अवबोध हेतु एक सुन्दर आलेख है। जैन परम्परा में उपलब्ध योग विषयक कृतियों में आचार्य हरिभद्रसूरि की यह कृति संभवतः सर्वाधिक प्राचीन है। इसमें पातञ्जल योगशास्त्र के कुछ सिद्धान्तों को स्वीकार करते हुए भी जैन तत्त्व-दृष्टि और आचारशास्त्रीय मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में ही मूलतः योग का प्रतिपादन है। आचार्य हरिभद्रसूरि की दृष्टि से योग का अर्थ है मोक्ष, अर्थात् आत्मा का अपने मूल स्वरूप से संयोग जिसकी प्राप्ति ज्ञान, दर्शन और चरित्र रूपी रत्नत्रय के आधार पर अनुष्ठेय क्रियाओं द्वारा होती है। इनमें भी आचार पक्ष पर प्रमुख बल दिया गया है। केवल चित्तवृत्तियों के निरोध से जन्य समाधि इसमें प्रमुख नहीं, अपितु साधन मात्र है। निरोध सभी कायिक, मानसिक एवं वाचिक वृत्तियों का अभीष्ट है। वस्तुतः 'योगबिन्दु' में योग के व्याज से समस्त जैन दर्शन ही समाहित कर लिया गया
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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