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________________ समर्पण "देह छतां जेहनी दशा वर्ते देहातीत" देहातीत अवस्था का वर्णन प्रवचनों में बहुत सुना जाना समझा है । पढ़ा भी है लेकिन जब समय आता है हम निष्फल हो जाते हैं । जैन भारती महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी महाराज की ऐसी दशा उनकी कठिन से कठिन शारीरिक पीडा के समय हमने अपनी नज़रों से देखी है, अनुभव की है। शरीर की अस्वस्थता में भी उन्हें सदा स्वस्थ पाया है। जब नींद न आये तब आनंदघनजी के पद को रटते थे और मस्ती का अनुभव करते थे। वह पद हैं : "अब हम अमर भये न मरेगें या कारण मिथ्यात्व दियो तज क्यूं कर देह धरेंगे अब हम अमर भये न मरेगें" जिनकी समाधि स्थल पर भी उनका प्रियपद "अब हम अमर भये न मरेगें" लिखा गया है। पू. मृगावती म.सा. की समाधि पर मुम्बई चौपाटी श्रीसंघ के मुख्य ट्रस्टी श्री सुधाकरभाई ने ट्रस्टियों को भावभरी विनती करके लिखवाया है "एनुं नाम सन्त जो लावे भवनो अन्त" पू. मृगावती म.सा. के लिए सहारनपुर में भृगुसंहिता वालों ने कहा था "यह जीवात्मा मोक्ष की खोज में फिर रहा है । इनका पूर्वजन्म पंजाब में "स्यालकोट" शहर में हुआ था" | उन्होंने आकाश जैसे विशाल, सागर जैसे गम्भीर, पृथ्वी जैसे सहनशील, स्फटिक जैसे निर्मल, निखालस, फलों से लदे हुए वृक्ष की तरह विनम्र, समता, शांति, सौम्यता, सौजन्यता "सर्व जीव करूं शासन रसी" आदि सद्गुणों के कारण जैन-जैनेतर छोटे-बड़े, जवान-वृद्ध, नये-पुराने विचारों वाले बुजुर्गों का भी मन जीत लिया था। समाज के अन्दर फैली हुई कुप्रथाओं, कुरुढ़ियो, अन्धविश्वासों, बाह्याडम्बरों को खत्म करके सादा जीवन उच्च विचारों का एवं जैनधर्म के शुद्ध तत्त्वों - सम्यक् दर्शन का उपदेश देकर शुद्ध श्रद्धा का प्रचार किया । इस तरह गुरु आत्मवल्लभ के
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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