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________________ कर्ता : श्री पूज्य रामविजयजी महाराज, मुने संभव जिनश्युं प्रीत, अविहड लागी रे कांई देखत प्रभु मुखः चंद, भावठ भागी रे...(१) जिन सेना-नंदन देव, दिलडे वसीयो रे। प्रभु-चरण नमे कर जोड, अनुभव-रसीयो रे...(२) तोरी धनुसय-च्यार प्रमाण, ऊंची काया रे मनमोहन कंचनवान, लागी तोरी माया रे...(३) प्रभु रायजितारि-नंद नयणे दीठो रे सावथ्थीपुर-शणगार, लागे मुने मीठो रे...(४) प्रभु ब्रह्मचारी भगवान, नाम सुणावे रे पण मुगतिवधू वशी-मंत्र, पाठ भणावे रे...(५) मुज रढ लागी मनमांहे, तुज गुण केरी रे नहि तुज मूरतिने तोल, सूरत भलेरी रे...(६) जिन ! महेर करी भगवान, वान वधारो रे श्रीसुमतिविजय गुरु-शिष्य, दिलमां धारो रे...(७) ७. वी ८. यहेरो. सुंE२ १०. उत्साह 3२
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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