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________________ जीव जीवन प्रभु म्हारा, अबोलडां - श्री पूज्य दीपविजयजी महाराज - ५ जीव जीवन प्रभु म्हारा, अबोलडां शानां लीधां छे राज; तमे अमारा अमे तमारा, वास निगोदमा रहेता अबोलडां १ काल अनंत स्नेही प्यारा, कदीय न अंतर करता; बादर स्थावरमा बेहु आपण, काल असंख्य निगमता. अबो २ विकलेन्द्रियमां काल संख्याता, विसर्या नवि विसरता; नरकस्थाने ह्या बहु साथै, तिहां पण बेहु दुःख सहता. अबो ३ परमा धामी सनमुख आपण टंग टग नजरे जोता; देवना भवमां एक विमाने, देवनां सुख अनुभवता. अबो ४ एकण पासे देवश्य्यामां थेई थेई नाटक सुणतां; तिहां पण तमे अने अमे बेउ साथे, जिन जन्म महोत्सव करता. अबो ५ तिर्यंच गतिमां सुखदुःख अनुभवता, तिहां पण संग चलंता; एक दिन समवसरणमां आपण, जिन गुण अमृत पीता. अबो ६ एक दिन तमे अने अमे बेउ साथे, वेलडीए वळगीने फरता; एक दिन बाळपणमां आपणे, गेडी दडे नित्य रमता. अबो ७ तमे अमे बेउ सिद्ध स्वरूपी, एवी कथा नित्य करता; एक कुल गोत्र एक ठेकाणे, एक ज थाळीमां जमता.. अबो ८ एक दिन हुं ठाकोर तमे चाकर, सेवा माहरी करता; आज तो आप थया जग ठाकोर, सिद्धि वधुना पनोता. अबो ९ काल अनंतनो स्नेही विसारी, काम कीधां मनगमता; हवे अंतर कीम कीधुं प्रभुजी, चौद राज जई पहोंत्या, अबो १० दीपविजय कविराज प्रभुजी, जगतारण जग नेता; निज सेवकेने यशपद दीजे, अनंत गुणी गुणवता. अबो ११ ३०२
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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