SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्ता : श्री पूज्य खीमाविजयजी महाराज । मोहन ! मुजरो लेजो ! राज ! तुम सेवामां रहे। वामा-नंदन जगदानंदन, जेह सुधारस खाणी । मुख मटके लोचनने लटके, लोभाणी ईंद्राणी - मोहन 0 ।। १ ।। भव-पट्टण चिंहुं दिशि चारे गति, चोराशी लाख चौटा । क्रोध-मान-माया-लोभादिक, चोवटीया अति खोटा-मोहन 0।।२।। मिथ्या-महेतो कुमति-पुरोहित, मदन-सेनानी तोरे । लांच लई लख लोक संतापे, मोह-कंदर्पने जोरे - मोहन 0 ।।३।। अनादि निगोदना बंदीखाने तृष्णा तोपे सख्यो । संज्ञा चारे चोकी मेली, वेद नपुंसक आंक्यो - मोहन 0 ।।४।। भव-स्थिति कर्म-विवर लई नाठो, पुण्य-उदय वाध्यो । स्थावर विकलेंद्रियपणुं ओळंगी, पंचेंन्द्रियपणुं लाध्यो - मोहन 0 ।।५।। मानवभव आरज कुल सद्गुरु, विमल-बोध मल्यो मुजने । क्रोधादिक सहु शत्रु विनाशी, तेणे ओळखाव्यो तुजने - मोहन 0 ।।६।। पाटण माहे परमदयाळु जगत विभूषण भेट्या । सत्तर बाणुं शुभ परिणामे, कर्म कठिन बल मेट्या-मोहन 0 ।।७।। समकित गज उपशम अंबाडी, ज्ञान कटक बल कीबूं । खीमाविजय-जिन-चरण पसाये, राज पोतानुं लीधुं-मोहन 0 ।। ८ ।। ૨૭૬
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy