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________________ कर्ता: श्री पूज्य न्यायसागरजी महाराज 1 2 अजितजिणंदा साहिब! अजितजिणंदा, मेरा साहिब में तेरा बंदा, साहिब अजितजिणंदा, जितशत्रु - नृप विजयादे-नंदा, लंछन चरणे सोहे गयंदा - सा० (१) सकळ करम जीती अ-जित कहाया, आप बळे थया सिद्ध सहाया - सा० मोहनृपति जे अटल अटारो, तुम आगे न रह्यो तस चारो सा० (२) विषय-कषाय जे जगने नडिया, तुम ध्यानानल शलभ' ज्युं पडिया-सा० दुश्मन दाव न कोई फावे, तिणथी अजित तुम नाम सुहावे - सा० (३) अजित थाउं हुं तुमचे नाम, बहोत वधारो प्रभु जगमांही माम-सा० सकळ सुरासुर प्रणमे पाया, न्यायसागरे प्रभुना गुण गाया - सा० ( To(8) २२
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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