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कर्ता : पूज्य श्री पद्मविजयजी महाराज khadka निरख्यो नेमि जिणंदने... अरिहंताजी, राजिमती को त्याग, भगवंताजी ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो... अरि. अनुक्रमे थया वीतराग... भग. चामर, चक्र, सिंहासन... अरि. पादपीठ संयुक्त... भग. छत्र चाले आकाशमां... अरि. देवदुर्बुभि वर उत्त... भग. सहस जोयण ध्वज सोहतो... अरि. प्रभु आगल चालंत... भग. कनक कमल नव उपरे... अरि. विचरे पाय ठवंत... भग. चार मुखे दीये देशना... अरि. त्रण गढ झाकझमाल... भग. केश रोम श्मश्रु नखा... अरि. वाधे नहि कोई काल... भग. कांटा पण उंधा होये... अरि. पंच विषय अनुकूल... भग. षटऋतु समकाले फळे... अरि. वायु नहीं प्रतिकूल... भग. पाणी सुगंध सुर कुसुमनी... अरि. वृष्टि होय सुरसाल... भग. पंखी दीये सुप्रदक्षिणा... अरि. वृक्ष नमे असराल... भग. जिन उत्तम पद पद्मनी... अरि. सेव करे सुरकोडी... भग. चार निकायना जघन्यथी... अरि. चैत्यवृक्ष तेम जोडी... भग
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