SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्ता : पूज्य श्री उदयरत्नजी महाराज-4 मुनिसुव्रत मन मोडुं मारूं, शरण ग्रयुं छे तमारं; प्रातः समय ज्यारे हुं जागुं, स्मरण करूं छु तमारुं हो जिनजी, तुज मूरति मन हरणी, भव सायर जल तरणी हो जिनजी...१ आप भरोसो आ जगमा छु, तारो तो घणं सारूं रे; जन्म जरा मरणो करी थाक्यो, आशरो लीधो छे में तारो... हो जिनजी...२ चुं चुं चुं चुं चिडीया बोले, भजन करे छे तमारूं; मूर्ख मनुष्य प्रमादे पड्यो रहे, नाम जपे नहीं तारूं... हो... जिनजी...३ भोर थतां बहु शोर सुगुं हुं, कोई हसे कोई रुवे न्यास सुखीओ सुवे दुःखीओ रूवे, अकल गतिए विचारूं... हो... जिनजी...४ खेल खलकनो बंध नाटकनो, कुटुंब कबिलो हुं धारूं; ज्यां सुधी स्वार्थी त्यां सुधी सर्वे, अंत समये सहं न्यारूं...हो...जिनजी..." माया जाळ तणी जोई जाणी, जगत लागे छे खारुं रे; उदयरत्न कहे प्रभुजी त्हालं, शरण ग्रयुं छे में साचु हो...जिनजी...६ २२८
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy