SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्ता: श्री पूज्य मोहनविजयजी महाराज 4 प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदरों, प्रभु पाखे क्षण एक मनें न सुहाय जो; ध्याननी ताळी रे लागी नेहरों; जलदघटा जिम शिवसुत वाहन दायजो. प्री.१ नेहघेलुं मन मारुं रे प्रभु अलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुज जो; मारे तो, आधार रे साहिब रावळो, अंतरगतनी प्रभु आगळ कहुं गुज्झ जो. प्री.२ साहेब ते साचो रे जगमां जाणीए, सेवकनां जे सहेजे सुधारे काज जो; एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमाएं तरणतारण जहाज जो. प्री.३ तारकता तुज मांहे रे श्रवणे सांभळी, ते भणी हुं आव्यो छु दीन दयाळ जो; तुज करु णानी लहेरे मुज कारज सरे, शुं घणुं कहीओ जाण आगळ कृपाळ जो. प्री.४ करुणाद्रष्टि कीधी रे सेवक उपरे; भव भय भावठ भांगी भक्ति प्रसंग जो; मनवांछित फळीया रे जिन आलंबने, कर जोडीने, मोहन कहे मनरंग जो. प्री.५ १६
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy