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________________ कर्ता : श्री पूज्य आनंदघनजी महाराज धार तलवारनी सोहिली दोहिली, चौदमां जिनतणी चरण-सेवो; धार पर नाचता देख बाजीगरा सेवना धारप रहे न देवा...१ । एक कहे "सेवीए विविध किरिया करी", फळ अनेकांत लोचन न देखे; फळ अनेकांत किरिया करी बापडा, रडवडे चार गतिमांहि लेखे...२ गच्छना भेद बहु नयन निहाळतां तत्त्वनी वात करतां न लाजे; उदर भरणादि निज काज करतां थकी, मोह नडिया कलिकाल राजे...३ "वचन निरपेक्ष व्यवहार जूठो' "कह्यो" वचन सापेक्ष व्यवहार साचो; वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फळ, सांभळी-आदरी कांई राचो...४ देवगुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे ? किम रहे शुद्ध श्रद्धान आणो ? शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया कही, छारपर लींपणुं तेह जाणो...9 पाप नहीं कोई उत्सूत्र भाषण जिस्युं, धर्म नहीं कोई जगसूत्र सरिखो; सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेह→ शुद्ध चारित्र परिखो...६ एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे; ते नरा दिव्य बहु काळ सुख अनुभवी, नियत आनंदघन राज पावे...७ १७२
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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