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________________ कर्ता : श्री पूज्य यशोविजयजी महाराज 20 स्वामी । तुमे कांई कामण कीधुं, चितडुं अमारुं चोरी लीधुं साहिबा ! वासुपूज्य जिणंदा, मोहना ! वासुपूज्य जिणंदा, अमे पण तुमशुं कामण करीशुं, भगतें ग्रही मन घरमा धरशुं - साहिबा० (१) मन-घरमा धरीया घर-शोभा, देखत नित रहेशे । थिर थोभा मने वैकुंठ अ' - कुंठित-भगते, योगी भाखे अनुभव - युगते - साहिबा ० (२) कलेश वासित मन संसार, कलेश रहति मन ते भवपार जो विशुद्ध मन घर तुमे आया, प्रभु तो अमे नवनिधि रिद्धि पाया-साहिबा० (३) सात राज अलगा जई बेठा, पण भगते अम मनमां पेठा अलगाने वलग्या जे रहेवुं ते भाणा' खडखड दुःख सहेवुं साहिबा० (४) ध्यायक ध्येय ध्यानगुण ऐके, भेद - छेद करशुं हवे टेके# खीरनीर परे तुमशुं मिलशुं, वाचक यश कहे हेजे हलशुं - साहिबा० (५) - १४९
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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