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________________ कर्ता : श्री पूज्य भाणचंद्रजी महाराज -14 वसुपूज्य नृपकुळ मंडणी, वासुपूज्य जिनराय - जिनवर । वस्तु तत्व प्रकाशता, वासव पूजित पाय - जिनवर बलिहारी तुम नामने, जेहथी कोडी कल्याण, जिनवर | नामथी दुःख दोहग टळे, मळे सुख निरवाण-जिन बलि० ॥ २ ॥ नामनुं समरण जे करे, प्रतिदिन उगते भाण-जिण० । ते कमळा विमळा लहे, पण करे कोई सुजाण - जिन० बलि० ॥ ३ ॥ चंदन' पन्नबंधन, 'शिखि रखे विखरी जाय-जिन 01 - कर्म बंधन ते जीवथी, छूटे तुम नाम- पसाय - जिन ० बलि० ॥४॥ संघन घनाघननी घटा, विघटे पवन प्रचंड-जिन० । 'मयगलनो मद किम रहे, जिहां वसे मृगपति चंड- जिन०बलि० ॥७॥ सहस- किरण जिहां उगीयो, तिहां किम रहे अंधकार - जिन० । तिम प्रभुनाम जिहां वसे, तिहां नहीं कर्म विकार-जिन ०बलि० ॥६॥ भाण कहे मुनि वाघनो, नितु समरुं तुम नाम-जिन० । जिम शिवकमळा सुख लहु,, माहरे एहीज काम-जिन - ० बलि० ॥७॥ ૧૪૨
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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