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________________ कर्ता : श्री पूज्य आनंदधनजी महाराज 20 शीतळ जिनपति ललित-त्रि-भंगी, विविध-भंगी मन मोहेरे । करुणा कोमळता तीक्ष्णता उदासीनता सोहेरे-शीतळ 0 ।। १ ।। सर्व-जंतु-हित-करणी करुणा, कर्म-विदारण तीक्षण रे। हान-दानरहित परिणामी, उदासीनता विक्षणरे-शीतळ 0 ।।२।। परख-दुःख-छेदन-ईच्छा करुणा, तीक्ष्ण पर-दुःख रीझेरे । उदासीनता उभयविलक्षण, एक ठामें किम सीझेरे ? शीतळ 0 ।।३।। अभयदान ते करुणा, मळक्षय तीक्ष्णता गुणभावे रे; प्रेरक विणकृति उदासीनता, इम विरोध मति नावे रे - शीतळ 0 ।।४।। शक्ति व्यक्ति त्रिभुवन प्रभुता, निपॅथता संयोगे रे । योगी भोगी वक्ता मौनी, अनुपयोगी उपयोगी रे - शीतळ 0 ।।७।। इत्यादिक बहु-भंग त्रि-भंगी, चमत्कार चित्त देती रे। अ-चरिज-कारी चित्र-विचित्रा, आनंदधन-पद लेती रे - शीतळ 0 ।।६।। १२२
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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