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________________ स्तवन - ३६ (राग : बेनारे...) जिनेश्वर पूरजो मारी आशा हो जिम पामुं शिवपुर वास, धर्म जिनेश्वर ध्याइएरे, गुणगाऊ गीरूआ तणा रे,वाधे बमणो नेह | ....... धर्म जिनेश्वर ध्याइये रे.... ॥१॥ काल अनादि निगोदमां रे, भमीयो अनंतीवार, Ma कर्म नहोरे रोलव्यो रे सेव्या पाप अढार ॥ २ ॥ | प्राणातीपात मृषा घणुं रे, त्रीजु अदत्तादान; विषयरसमां रसीयो रे, कीधु बहुं दुर्ध्यान ॥ ३ ॥ नवनिधः परिग्रह मेळव्यो रे, किधो क्रोध अपार; मानमाया लोभे करीने, न लह्यो तत्व विचार ॥ ४ ॥ | रागद्वेष कलह कर्या रे, दिधा परने आळ; पैशुन्य रति अरति वळी रे, सेव्या दुःख असराल ॥५॥ दोष दीधा गुणवंतनेरे, किधो माया मोष; मिथ्यात्व शल्य दोषे करी रे, किधो अविरती पोष ॥ ६ ॥ पाप स्थानक सेवी जीवडो रे, रूल्यो चऊगतिमोझार रे; जन्म मरणादी वेदना रे, सही अनंती वार ॥७॥ अह विडंबना आकरी रे, जाणो श्री जिनराय; बाह्य ग्रहीने तारजो रे, सारो सेवक काज ॥८॥ धर्म जिणंदनी स्तवना थकी रे, पहोती मननी आश; जिन उत्तम पद सेवना रे, रतन लहे शिववास ॥९॥ जिनेश्वर ........
SR No.032214
Book TitleSurendra Bhakti Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPiyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
PublisherShatrunjay Temple Trust
Publication Year2003
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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