SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६५] ३० नवपदजी का स्तवन (राग–महा विषम काले-ए देशी) अलवेलानी जोऊ वाटड़ी रे, महारी खसी खसी जाये पाटलीरे । जाणी घेवर केरी माटली रे ॥१०॥ प्रेम धरी ने परखीये रे अंतर भावे हरखीये रे । नेक नजर थी निरखीये रे ॥१० १॥ नवपद ने मनमां धरो रे, शिव सुन्दरी सहजे वरो रे । प्रदक्षिणा फेरा करो रे ।।अ० २॥ पहेले पद अरिहंत नारे, गुणगावो भगवंतना रे । कर्म चुरो जेम संतना रे ॥१० ३॥ बीजे पदे सिद्ध शोभता रे, त्रण भुवनमां नहीं नहीं लोभता रे । तुमे कोई उपर नहीं कोपतारे ॥ ४॥ त्रीजे पदे सुख पामीये रे, आचारज शीश नामीये-रे । अष्ट कर्म दुःख वामीय रे ॥१० ५॥ चौथे पद उवज्झायने रे, समरे संपति थायने रे। दुःख दोहग सहु जायने रे ॥अ०६॥ पंचमुपद सुखे वरोरे, साधु सकल हिये धरोरे । भव समुन्द्र सहेजे तरो॥०-८॥ समकित सरखी सुन्दरी रे, खटपट ने मुंको परि रे । सहेजे शिव सुन्दरी वरी रे ।।अ० ९।। ज्ञान चारित्र ने तपनो रे, चउद मुँवनमाँ खपनो रे। नवपद बिना नहिं जपनो रे ॥१०२१०॥ नवपद निश्चे जाणीये रे, शिव सुन्दरी सुख माणीये रे । शुभवीर विजय नी वाणीये रे॥११॥ - - - -
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy