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________________ [ ५८ ] विमल वाणी प्रभुनी सुणी, भव्य जीव पड बोहेरे || वि०४ || विमल जिहां तस जाणीये, जे विमल जिणंद गुण गावेरे । श्री खिमाविजय पय सेवतां, विमल जस बहु पावे रे || वि०५ ॥ २१ नमिनाथजी का स्तवन (राग - सुमतिनाथ गुण सु ं मिलीजी - ए देशी) raataमाँ जिन लेजी, अरज करू कर जोड़ | आठ अरिए मुंज बाँधीजी, ते भव बंधन छोड़ । प्रभु प्रेम धरी ने अवधारो अरदास || १|| ए अरथी अलगा रह्यो जी, अवर न दीसे देव । तो किम तेहन जाचीयेजी, किम करू तेहनी सेव || प्रभु ०२ || हास्य विलास विनोद मांजी, लीन रहे सुर जेह । आपे रिगण वश पड्याजी, अवर उगारे किम तेह || प्रभु ०३ ॥ छत ते होय तिहां जाचीये जी, छते किम सरे काज | योग्यता विण जाचताजी, पोते गुमावे लाज ॥ प्रभु०४ ॥ निश्चय छे मन माहरेजी, तुमथी पामीश पार । पण मुख्यो भोजन समेजी, भाणे न टके लगार || प्रभु०५|| ते माँटे कहुँ तुम भणीजी, वेगे की जे सार । आखर तुमहीज श्रापशोजी, तो शी करो हवे वार || प्रभु०६ || मोटा ना मन मां नहिजी, अरथी उतावलो थाय । श्री खिमा विजय गुरु नामथी जी, जग जस वांछित पाय || प्रभु०७
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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