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________________ [ ५१] 'मुरित सु अधिकेरा है ॥ स ० || २ || शोभा देखी प्रभु मुख फेरी, आंखड़ली उल्लसे अधिकेरी है । जाणु जे कीजे सेवा भलेरी, टाले दूर भवनी फेरी है || स०|| ३ || मोहन मुरति मोहन गारी, ऐ सम नहीं जग उपकारी है। एहीज साची कामणगारी, जिणे वश करी मुगति ठगारी हे ॥० ॥४॥ जिम जिम देख नयननिहारी, तिम मुझ मन लागे प्यारी हे । एह मुरति देखी मनोहारी, दरिशननी जाऊ बलिहारी है | | ० ||५|| नाभी नरेसर कुल अवतारी, मरूदेवी माता जे तारी है । सुनंदासुमंगला वरी जेणे नारी, युगला धर्म निवारी है || स ० || ६ || राज्यनी रीति जेणे विस्तारी, निरमलवर केवलधारी हे । शेत्र जा गिरिवर प्रभु पाऊ धारी, महिमा अनंत धारी हे || स०||७|| ऋषभ जिनेसर मुरति सारी, शेत्रु'जा गिरिवर शोभाकारी है । केसर विमल कहे जे नरनारी, प्रणमे ते जग जयकारी हे ||स||८|| 1 ++++++ १३ अभिनन्दन स्वामी का स्तवन (राग - सुण जिणवर शेत्रुजा धणीज ए देशी) निरमल नाण गुणे करीजी, तु जाणे जग भाव । जग हितकारी तु जयोजी, भवजल तारण नाथ || जिणेसर सुख अभिनंदन जिणंद, तुझ दरिशन सुखकंद || जि० सु० ॥१॥ तुज दरिशन मुज वालहुंजी, जिम कुमुदिनी मन चंद ।
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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