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________________ [४] देई प्रदक्षिणा देवने, वाणी सुणे सविलोक ॥अति०॥२॥ चाणी जोजन गामिनी, सुरनर ने तिरीयंच । ध्वनि मधरी ध्वनि मधरी प्रति बुझवे, कहे संसार प्रपंच ॥अति ॥३॥ चिहुँ दिशिवर चामर ढले, सुरपति सारे छे सेव । मणिमय कनक सिंहासने, बेठा देवाधिदेव ॥अति॥४॥ पुठे भामंडल झलहले गाजें दुदुभि गाज । छत्र त्रयीशिर उपरे, मेघाडंबर साज ॥अति०॥५॥ १० धर्मनाथजी का स्तवन ( राग-ऋषभ जिणंदा ऋजिणंदा ऐ देशी ) धरम जिनेश्वर केसर वरणा, अलवेसर सरवांगी सरणा । ए चिंतामणि वांछित करना, भज भगवंत भुवन उद्धरना ॥१०॥१॥ नवले नूरे चढ़ते शुरे, जे जिन भेटे भाग्य अंकुरे । प्रगट प्रभाव पुन्य पडुरें, दारिद्र दुःख तेहना प्रभु चुरे ॥३०॥२॥ जे सेवे जिन चरण हजूरे, तास घरे भरे धन भरपुरे । गाजे अंबर मंगल तुरे अरियण ना भय भाजे दुरे ॥३०॥३॥ मंगलगाजे शोभित सिंधुरे, जन सहु गाजे सुजस सपुरे । गंज्यो जाय नवीण ही करूरे, अरति थाय न काइ अणुरे ॥१०॥४॥ जिम भोजन होय दाल ने कुरे, जीपे ते रण तेज शूरे । मेघ तणा जल नदीय भुरे ।। मोहने सुर लखमी पुरे ॥१०॥शा ०००००००००००००००
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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