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________________ [ ३४ ] अंतर मान | पास मिसर जगदीशान, रीषभचरित्र क प्रधान, सातमु एह वखाण ||२|| 3 1 आठ गणधर स्थविर गणिजे, नवमें वारसा समाचारी लीजे, नव वखाण सुखिजे । चैत्यपरिपाटि विधिश किजे, यथाशक्ति तप तपीजे, आश्रव पंच तजीजे ॥ भावे मुनि वरने बंदीजे, संवत्सरी पडिकमणु कीजे, संघ सकल खामिजे । श्रागम वयण सुधारस पीजे, शुभ करणी सवि अनुमोदिजे, नरभव सफल करींजे ||३|| मणिमां जिम चिंतामणि सार, पर्वतमा मेरु उदार, तरुमा जिम सहकार । तिर्थंकर जिम देव मां सार, गुण गणमां समकित श्री कार, मंत्रमाही नवकार | मतमां जिम जिनमत मनोहार, पर्व पजुषन तिम विचार, सकल पर्व शणगार । पारणे स्वामी भक्ति प्रकार, माणेकविजय विधन अपहार, देवी सिद्धाई जयकार || ४ || १३ रोहिणी की स्तुति का जोडा (राग - वीर जिनेसर अति अलवेसर) शीवसुख दायक नायक ए जिन, सेवे चोसठ इंदा जी । वासुपूज्य जिन ध्यान स्मरण थी, नित नित होय आणंदा जी ।।
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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