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________________ [१८] २८ वासुपूज्य जिन चैत्यवन्दन वासव पूजित वासू पूज्य, तनु विद्र मवान । राणी जया वासू पुज्य राय, कुल तिलक समान ॥१॥ चंपा नयरी जनमीयो, सीतेर धनुष देह । वर्ष बहोतेर लाख आयु, कीधो भव छेह ॥२॥ यम महिष लछंन मीसे, सेवे जेहना पाय । मान विजय प्रभु नाम थी, भव भव पातक जाय ॥३॥ २९ श्री शान्ती जिन चैत्यवन्दन शान्तीकरण श्री शान्ती जिन, जेने मारी निवारी । अचिरा कुखे उपन्यो, मृग लछंन धारी ॥१॥ गजपुरी राजा विश्वसेन, कुल मुगट नगीनो । चालीश धनुष प्रमाण देह, मैं साहिब कीनो ॥२॥ सोवन वर्ण तनु राज तो ए, वर्ष लाख जस आय । मान विजय वाचक भणे, जिन नामे सुख थाय॥३॥ ३० श्री मल्ली जिन चैत्यवन्दन मल्लि जिणेसर मोह मल्ल, जिने जीत्यो हल्ल । हल्ल मल्ल करतां शुभ, प्रणमे जस गल्ल ॥१॥ मिथिला नयरी कुभुराय, कुल कमल विकासी । प्रभावती राणी जन्मयो, नीलुत्पल भासी ॥२॥ धनुष पण वीस उजात तनु ए, कुभं लछंन वर पाय । वर्षे पंचावन सहस आय, मान लहे सुपसाय ॥३॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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