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________________ चैत्यवन्दन के पहिले बोलने का पद सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त मेघो । दुरित तिमिर भानु कल्पवृक्षो-पमानः ॥ भवजल निधि पोतः सर्वे संपत्ति हेतुः । सभवतु सततंवः श्रेयसे शांतिनाथ श्रेयसे पार्थ नाथः । १ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन चैत्यवन्दन ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्व चिंतामणी यते । ॐ हीं धरणेन्द्र रोट्या, पद्मा देवी युतायते ॥१॥ शान्ति तुष्टि महापुष्टि, धृति कीर्ति विधायि ने । ॐ ही द्विड् व्याल वैताल, सर्वाधि व्याधि नाशिने ॥२॥ जया जिताख्या विजयाख्या, पराजितयान्वितः। दिशां पाले गृहै ये, विद्यादेवी भिरन्वितः ॥३॥ ॐ असिया उसाय, नमस्तत्र त्रेलोक्य नाथतां । चतुःषष्ठिः सुरेन्द्रास्ते, भाषते छत्र चामरैः ॥४॥ श्री शंखेश्वर मंडन, पाच जिन प्रणतकल्प तरकल्प । चूरय दुष्ट व्रातं, पूरय में वांछितं नाथ ॥ ५ ॥ २ श्री रोहिणी तप का चैत्यवन्दन रोहिणी तप आराधिये, श्री श्री वासुपूज्य । दुःख दोहग दूरे टले, पूजक होये पूज्य ॥१॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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