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________________ [१६४] प्रावि मिल्यो एकथ सजनी. । शी० ५ ॥ पुनरपि राज्य मिले थके, लेवे संयम भार सजनी. । दंपति सौधर्मे गयां, नल थयो धनद सुरसार सजनी. ॥ शी० ६ ॥ तिहांथी चवी ने थई कनकवती गुण गेह सजनी.। वसुदेव परणी तिहो, उच्छव धनद करे तेह सजनी. ॥ शी० ७ ॥ दर्पण घर अवलोकतां, लही केवल थइ सिद्ध सजनी. । दमयंती मोटी सती नाम थकी नव निधी सजनी. ॥ शी० ८ ॥ नेमि चरित्र दशवैकालिके, वृतिमाही विस्तार सजनी । ज्ञान विमल गुण जे लहि, सतीयोमाँ सिरदार सजनी॥शी० ६॥ ३५ श्री सुलसा श्राविका की सज्झाय (अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ए-देशी) शील सरगी रे, सलसा महा ती वर समकित गुण धारीजी । राजग्रही पुर नागरथिक तणी, सुलसा नामे नारीजी ॥शी०॥१॥ नेह निविड़ गुण तेह दंपत्ति तणौ, समकित गुण थिर पेखीजी । इंद्र प्रसंसेर तस सत कारणे, आव्यो हरिणेगमेषीजी ।शो०॥२॥ ग्लान मुनि ने काजे याचीया, ओषेध कुंपा चारीजी । भग्न देखड्या पण नवि भावथी, उणिय धरीय लगारजी ॥शी०॥३॥ प्रगट थइ सुर सुत हेते दीये, गुटीकां तिहां बत्रीसजी । तस संयोगे रे
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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