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________________ [१५८] धार । पर्षदा बुझी रे आत्म रंग थी रे, वरीया शिव पद सार ॥ श्रा० १५ ॥ ३१ समकीतना सड़सठ बोलनी सज्झाय ढाल छठी ( अभिनंदन जिन दरिशण तरसीए-ए देशी ) आठ प्रभावक प्रवचना कह्या, पावयणी धुरि जाण वर्तमान श्रुतना जे अर्थनो, पार लहे गुण खाण ॥ धन धन शासन मंडन मुनिवरा ॥ १ ॥ धर्म कथी ते बीजे जाणीए, नंदिषेण परे जेह । निज उपदेशे रे रंजे लोकने, भंजे हृदय संदेह ॥ धन० २ ॥ वादी बीजे रे तक निपुण भण्यो, मल्लवादी परे जेह । राज द्वारे जय कमला वरे, गाजतो जिम मेह ॥ धन० ३ ॥ भद्रबाहु परे जेह निमित्त कहे, परमत जीपण काज । तेह निमित्ती रे चोथो जाणीए, श्री जिन शासन राज ॥ धन० ४ ॥ तप गुण अोपे रे रोपे धर्म ने, गोपे नवि जिन आण । आश्रय लोपे रे नवि कोपे कदा, पंचम तपसी ते जाण ॥ धन० ५ ॥ छठो विद्या रे मंत्र तणो बलि , जिम श्री वयर मुणिंद । सिद्ध सातमो रे अंजन योगथी, जिम कालिक मुनिचन्द ॥ धन० ६ ॥ काव्य सुधारस मधुर अर्थ भर्या, धर्म हेतु करे जेह, सिद्धसेन परे राजा रीझवे, अहम वर कवि तेह ॥ धन० ७॥ जब नवि होवे प्रभावक एहवा, तव विधि पूर्व अनेक । जात्रा पूजादिक करणी करे, तेह प्रभावक छेक ॥धन० ८॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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