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________________ [ १४३] अजुवालु त्रिहुं जग थयुरे म, वरत्यो जय जयकाररे ज. । चोथु वखाण पूरण इहां रे म., बुध माणक विजय हितकाररे ज ॥९॥ १७ यशोदा विलाप की सज्झाय ( साहेबा वाहु जिनेश्वर विनवु) नणदल सिद्धारथ सुत सुंदरु, रुपनिधि बहु गुणवंत हो । न० त्रिशला कुखे अवतर्या, ए छे अम तणा कंत हो ॥१॥ नणदल थारो वीरो चारित्र लिये, तु केम लेवण देय हो । न० मारो मनायो माने नहीं, कांइ उपाय करेह नणदल | थारो० २ ॥ नणदल सुंदर भोजन सहु तज्यां, तज्या शणगार ने स्नान हो । नगदल बोलाव्या बोले नहीं, रात दिवस रहे ध्यान हो न०॥ थारो० ३॥ नणदल केइ केई वानां मे कर्या, केइ केइ कर्या रे उपाय हो । नणदल पण नवि भींजे चित्तशु, कोरडु मग कहेवाय हो न० ॥ थारो० ४ ॥ नणदल जाण्यु हतु खट खंडनु, पालशे राज्य उदार हो । नणदल हय गय रथ पायक घणा, होशे विविध प्रकार हो न० ॥ थारो० ५॥ नणदल छेल छबीला राजवी, करतां ऐहनी सेव हो । नप्रदल ते पण सहु स्थाने गया, जाणी निरागी देव होन० ॥थारो० ६॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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