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________________ [१४१] सुगुण नर जुत्रो जुत्रो कर्म प्रधान, कर्म सवल बलवान । सुगुणनर० जुत्रो० ए आंकणी ॥ १ ॥ आवे तो जन्मे नहींजी, जिन चक्री हरि रोम । उग्र भोग राजन कुलेजो, आवे उत्तम ठाम ॥ सु० २॥ काल अनंते उपनाजी, दश अच्छेरा रे होय । तिणे अच्छेरु ए थयुजी, गर्भ हरण दश माहे ॥सु. ३॥ अथवा प्रभु सत्यावीशमांजी, भवमां त्रीजे जन्म । मरीचि भव कुल मद कीयोजी, तेथी बाध्युनीच कर्म ॥सु०४॥ गोत्र कर्म उदये करीजी, माहण कुले उववाय । उत्तम कुले जे अवतरेजी, इंद्रि जीत ते थाय ॥ सु० ५ ॥ हरिणगमेषी तेड़ीनेजी, हरि कहे एह विचार । विप्र कुलेथी लई प्रभुजी, क्षत्रिय कुले अवतार ।। सु० ६॥ राय सिद्धारथ घर भलीजी, राणी त्रिशला देवी । तास कुखे अवतरियाजी, हरि सेवक तत्खेव ॥ सु० ७ ॥ गज वृषभादिक सुन्दरुजी, चौद सुपन तिणि वार । देखी राणी जेहवांजी, वर्णव्यां सुत्रे सार ॥ सु० ८॥ वणन करी सुपन तणुजी, मूकी बीजुवखाण। श्री.क्षमाविजय गुरु तणोजी, कहे माणक गुण खाण ।।सु. ९॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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