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________________ [१३७] हुं. । मोहनीय क्षये निर्मलुरे लाल, क्षायक समकित वासर ॥ हुं० न० ३ ।। अक्षय स्थिति गुण उपन्योरे लाल, आयु कर्म अभावरे हुं० । नाम कर्म क्षये निपन्योरे लाल, अरुपादिक गति भावरे ।। हुं० न० ४ ॥ अगुरु लघु गुण उपन्यो रे लाल, न रह्यो कोई विभावरे हुं० । गोत्र कर्मना नाशथी रे लाल, निज प्रगट्या जस भाव रे ।। हुं० न० ५ ॥ अनंत वीर्य आतम तणु रे लाल, प्रगट्यो अन्तराय नाश रे हुं० । आठे कर्म नाशी गया रे लाल, अनंत अक्षय गुणवास रे ॥ हुं० न० ६॥ भेद पन्नर उपवारथी रे लाल, अनंत परंपर भेद रे हुं० । निश्चयथी वीतरागना रे लाल, त्रिकरण कर्म उच्छेहरे ।। हुं० न० ७ ॥ ज्ञानविमलनी ज्योतिमां रे लाल, भासित लोकालोक रे हुं० । तेहनां ध्यान थको थशे रे लाल, सुखीया सघला लोक रे ॥ हुँ० न० ८ ॥ १२ श्री आचार्य पद की सज्झाय प्राचारी आचार्यनोजी, त्रीजे पदे धरो ध्यान । शुभ उपदेश परुपताजी, कह्या अरिहंत समान सुरीश्वर ॥ नमतां शिव सुख थाय, भव भवना पातिक जाय ।। सू० १ ॥ पंचाचार पलावताजी, आपण ते पालंत । छत्रीश छत्रीश गुणेजी, अलंकृत तनु विलसन्त ॥ सू० न० २॥ दर्शन ज्ञान चारित्रनाजी, एकेक आठ प्राचार । बारह तप
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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