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________________ [ १३५ ] ९ श्री वीश स्थानक की सज्झाय अरिहंता पहेले स्थाने गणीये, बीजे पद सिद्धाणं । त्रीजे प्रवचन, आचार्य चौथे, पांचमे पद थेराणं रे ॥ १ ॥ भवीयां वीश स्थानक तप कीजे, ओली वीश करीजे रे भ. । गुणणु एह गणीजेरे भ., जिम जिन पद पामीजे रेभ. ॥ नरभव लाहो लीजे रे भ. ॥ ए आंकणी ॥ उपाध्याय छ सव्व साहूणं, सातमे आठमे नाा । नवमे दर्शन दशमे वियरस, चारित्र अग्यारने जागरे ॥ भ. २ ॥ बारमे ब्रह्म व्रत धारीणं, तेरमे किरियाणं । चौदमे तप पद पंदरमे गोयम, सोलसमे नमो जिला रे । भ. ३ ।। चारित्तस्स सत्तरमे जपीए, अठ्ठारमे नाणस्स । ओगणीशमे नमो सुयस्स संभारो, वीशमे तित्थस्स रे || भ. ४ ॥ एकासणादि तप देववन्दन, गराणु दोय हजार । सत्य विजय बुध शिष्य सुदर्शन, जंपे एह विचार रे ॥ भ. ॥ ५ ॥ १० श्री नवपदजी की सज्झाय ( नणइलनी - ए देशी. अरिहंत प्रथमपदनी सज्झाय ) वारी जाउं श्री अरिहंतनी, जेहना गुण छे बार मोहन । प्रतिहारज आठ छे, मूल अतिशय चार मोहन.
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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